प्रदोष व्रत प्रत्येक माह दोनों पक्षों में त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। प्रायः ये देखा जाता है कि एकादशी को लोग विष्णु से और प्रदोष को शिव से जोड़ कर देखते हैं। कहा जाता है कि एक बार चंद्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गए थे, तो भगवान शिव ने त्रयोदशी तिथि को ही उन्हें रोग से मुक्त कर दिया था। तभी से इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। एकादशी की तरह यह भी महीने में दो बार त्रयोदशी के दिन पड़ता है। एकादशी और त्रयोदशी दोनों का संबंध चंद्रमा से है, अतः इस दिन जो व्रत रख कर फलाहार करता है, वह कुंडली में अपने चंद्रमा को मजबूत करता है। माना जाता है कि चंद्रमा सुधारने से शुक्र भी सुधर जाता है, और शुक्र सुधरने से बुध भी अपने-आप ठीक हो जाता है। इस तरह से तीनों ग्रह शुभ फलदायी हो जाते हैं और जीवन सरल हो जाता है। इस व्रत से आप अशुभ संस्कारों को भी नष्ट कर सकते हैं।
अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है, यानि सोमवार का प्रदोष, मंगल और अन्य वारों को आने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग बताई गयी है। रविवार के प्रदोष को रवि-प्रदोष, सोमवार के प्रदोष को सोम-प्रदोष, मंगलवार के प्रदोष को भौम-प्रदोष, बुधवार के प्रदोष को सौम्यवारा प्रदोष, बृहस्पति वार के प्रदोष को गुरुवारा प्रदोष, शुक्रवार को भृगुवारा प्रदोष, शनि प्रदोष से पुत्र कामना की पूर्ति होती है।
प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न कर जीवन में सुख-समृद्धि, लक्ष्मी प्राप्त करने का सुगम पाठ है। प्रदोषकाल में शिव पूजन अत्यन्त लाभदायक होता है। कहा जाता है कि रावण प्रदोष काल में शिव को प्रसन्न कर, सिद्धियां प्राप्त करता था।
प्रातःकाल स्नानादि से पवित्र होकर शिव-स्मरण करते हुए निराहार रहें, सायंकाल, सूर्यास्त से एक घण्टा पूर्व, पुनः स्नान करके सुगंधि, मदार पुष्प, बिल्वपत्र, धूप-दीप तथा नैवेद्य आदि पूजन सामग्री एकत्र कर लें, पांच रंगों को मिलाकर पद्म पुष्प की प्रकृति बनाकर आसन पर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाय और देवाधिदेव शिव का पूजन करें। पंचाक्षर मंत्र का जाप करते हुए जल चढ़ाएं और ऋतुफल अर्पित करें। जिस कामनापूर्ति हेतु व्रत किया जा रहा है, उसकी प्रार्थना भगवान शिव के समक्ष श्रद्धा-भाव से करें, शिव के साथ पार्वतीजी और नंदी का पूजन भी अवश्य करें और शिवाष्टकम् का पाठ करें। इस स्त्रोत्र का पाठ करने से सुन्दर स्त्री, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत दोनों पक्षों की त्रयोदशी को करना चाहिए, प्रदोष व्रत अति सरल और सभी प्रकार का फल देने वाला है। स्कन्द आदि पुराणों में इस व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को सिंदूर, हल्दी, तुलसी, केतकी और नारियल का पानी बिल्कुल भी न चढ़ाएं।
चमत्कारिक फायदे: प्रदोष व्रत में शिवाष्टक का पाठ
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम् ।
भवद्भव्य भूतेश्वरं भूतनाथं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 1 ॥
गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकाल कालं गणेशादि पालम् ।
जटाजूट गङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 2॥
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महा मण्डलं भस्म भूषाधरं तम् ।
अनादिं ह्यपारं महा मोहमारं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 3 ॥
वटाधो निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 4 ॥
गिरीन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदापन्न गेहम् ।
परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्-वन्द्यमानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 5 ॥
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भोज नम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्धमानं सुराणां प्रधानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 6 ॥
शरच्चन्द्र गात्रं गणानन्दपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णा कलत्रं सदा सच्चरित्रं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 7 ॥
हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारं।
श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 8 ॥
स्वयं यः प्रभाते नरश्शूल पाणे पठेत् स्तोत्ररत्नं त्विहप्राप्यरत्नम् ।
सुपुत्रं सुधान्यं सुमित्रं कलत्रं विचित्रैस्समाराध्य मोक्षं प्रयाति ॥
Comments