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- प्रणम्य शिरसादेवं गौरी पुत्रम् स्तोत्र का अर्थ और लाभ
भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र गणेश का पूजन भारत में और विश्वभर में गणेश चतुर्थी के त्योहार के दौरान बड़े ही श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। उनकी बुद्धि, विवेक विनम्रता और माता- पिता की भक्ति के गुणों ने उन्हें एक प्रिय देवता बना दिया है, जो केवल बाधाओं को दूर करने के लिए ही नहीं, अपितु अपने भक्तों पर अनुग्रह और कृपा भी बरसाते हैं। भगवान गणेश के शक्तिशाली स्तोत्र: संकटों से मुक्ति और सफलता की कुंजी भगवान गणेश को विघ्न-हर्ता कहा जाता है, जो सभी प्रकार की समस्याओं और बाधाओं को दूर करने वाले हैं। नारद पुराण से लिया गया एक विशेष स्तोत्र भगवान गणेश के सबसे प्रभावशाली स्तोत्रों में से एक है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में शांति, स्वास्थ्य लाभ, धन की वृद्धि, और सभी प्रकार की बुराइयों से निवृत्ति मिलती है। आइए, इस पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें और इसके माध्यम से अपने जीवन की सभी समस्याओं का समाधान करें। भगवान गणेश के स्तोत्र का महत्व भगवान गणेश के इस स्तोत्र का जाप करने से सभी प्रकार की समस्याएं और बाधाएं दूर हो जाती हैं। जब जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा आए, तो प्रत्येक बुधवार को इस स्तोत्र का पाठ करने से छः महीने के भीतर ही सभी वांछित फल प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र भयमुक्ति प्रदान करता है और जीवन में सिद्धि की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है। स्तोत्र के लाभ शांति और स्थिरता : इसके पाठ से मन और बुद्धि में शांति और स्थिरता प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति का जीवन सफलता की ओर अग्रसर होता है। स्वास्थ्य लाभ : नियमित पाठ से स्वास्थ्य में सुधार होता है और शारीरिक एवं मानसिक सुख की प्राप्ति होती है। धन की वृद्धि : यह स्तोत्र धन की वृद्धि में सहायक होता है और जीवन में समृद्धि लाता है। विद्यार्थियों के लिए लाभकारी : विद्यार्थियों को विद्या में प्रगति और सफलता मिलती है। संकटों से मुक्ति : इस स्तोत्र का जाप करने से व्यक्ति को समस्त प्रकार की संकटों और दुर्भावनाओं से मुक्ति मिलती है। सिद्धि की प्राप्ति : एक साल तक इसे नियमित रूप से पाठ करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। पाठ विधि तैयारी : स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एक पवित्र स्थान पर बैठें। स्थापन : भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं। संकल्प : मन में भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा और भक्ति का संकल्प लें। पाठ : भगवान गणेश के स्तोत्र का पाठ करें और उनका ध्यान करें। भगवान गणेश का यह स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायी स्तोत्र है, जिसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में शांति, स्वास्थ्य लाभ, धन की वृद्धि, और सभी प्रकार की बुराइयों से निवृत्ति मिलती है। भगवान गणेश की कृपा से इस स्तोत्र का पाठ करने वाले को सभी प्रकार की शुभ फल प्राप्त होते हैं और वे उनके जीवन में खुशहाली लाते हैं। भगवान गणेश की भक्ति और उनके स्तोत्र का पाठ करके हम अपने जीवन की सभी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं और जीवन को सफल बना सकते हैं। गणपति बप्पा मोरया! नारद उवाच प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् । भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुष्कामार्थसिद्धये ॥ नारद जी कहते हैं- पहले मस्तक झुकाकर गौरीपुत्र विनायका देव को प्रणाम करके प्रतिदिन आयु, अभीष्ट मनोरथ और धन आदि प्रयोजनों की सिद्धि के लिए भक्त के हृदय में वास करने वाले गणेश जी का स्मरण करें । प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् । तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥ 2 ॥ लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च । सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥ 3 नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् । एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥ 4 ॥ द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः । न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम् ॥ 5 जिनका पहला नाम ‘वक्रतुण्ड’ है, दूसरा ‘एकदन्त’ है, तीसरा ‘कृष्णपिङ्गाक्षं’ है, चौथा ‘गजवक्त्र’ है, पाँचवाँ ‘लम्बोदर’, छठा ‘विकट’, सातवाँ ‘विघ्नराजेन्द्रं’, आठवाँ ‘धूम्रवर्ण’, नौवां ‘भालचंद्र’, दसवाँ ‘विनायक’, ग्यारहवाँ ‘गणपति’, और बारहवाँ नाम ‘गजानन’ है। जो कोई भी सुबह, दोपहर और शाम इन बारह नामों को पढ़ता है, उसे कभी भी पराजय का डर नहीं देखना होगा और वह यह नाम-स्मरण उसके लिए सभी सिद्धियों का उत्तम साधन है। विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥ 6 ॥ जो शिक्षा ग्रहण करेगा उसे ज्ञान मिलेगा, जो धन कमाना चाहता है उसे धन प्राप्त होगा, जो पुत्र की इच्छा रखता है उसे पुत्र मिलेगा और जो मोक्ष चाहता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् । संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥ 7 ॥ मंत्र का जाप करने से छह महीने के अंदर ही गणपति को फल दिखने लगेगा और एक वर्ष तक जप करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है। अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् । तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥ 8 ॥ जो इस स्तोत्र को भोजपत्र पर लिखकर आठ ब्राह्मणों को दान करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सम्पूर्ण विद्या की प्राप्ति होती है। इति श्रीनारदपुराणे सङ्कष्टनाशनं नाम गणेश स्तोत्रम् ।
- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करते ही मिलेंगे चमत्कारी लाभ
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से विपदाएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं और समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। ये सिद्ध स्त्रोत है और इसे करने से दुर्गासप्तशती पढ़ने के समान पुण्य मिलता है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र: चमत्कारी लाभ और महत्व सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायी स्तोत्र है, जिसे भक्तजन समस्त विपदाओं और कष्टों से मुक्ति पाने के लिए पाठ करते हैं। इसे सिद्ध स्तोत्र माना गया है और इसके पाठ का फल श्री दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ के समान प्राप्त होता है। आइए, इस पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें और इसके माध्यम से अपने जीवन की सभी समस्याओं का समाधान करें। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर में उन्नति, विद्या में प्रगति, और शारीरिक एवं मानसिक सुख की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली है। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान इसका पाठ करके व्यक्ति दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ के बराबर पुण्य अर्जित कर सकता है। कुंजिका स्तोत्र का महत्व इस स्तोत्र का नाम 'सिद्ध कुंजिका' इसीलिए रखा गया है क्योंकि यह समस्याओं का कुंजी रूप में समाधान प्रदान करता है। जब किसी समस्या का समाधान नहीं मिल रहा हो या किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, तब सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। भगवती दुर्गा की कृपा से यह स्तोत्र व्यक्ति की रक्षा करता है और उसे सुख-समृद्धि प्रदान करता है। पाठ विधि तैयारी : स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एक पवित्र स्थान पर बैठें। स्थापन : देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं। संकल्प : मन में देवी दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भक्ति का संकल्प लें। पाठ : सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें और भगवती दुर्गा का ध्यान करें। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का अद्वितीय स्तोत्र है, जो भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है। इसका नियमित पाठ जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। इस स्तोत्र का प्रभाव इतना शक्तिशाली है कि इसके पाठ से जीवन के सभी संकट और समस्याएं दूर हो जाती हैं। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ देवी दुर्गा की आराधना का एक अमूल्य साधन है, जो प्रत्येक भक्त के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भक्तिभाव से भरे इस स्तोत्र का जाप करके हम देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं। जय माता दी! सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् ॐ अस्य श्रीकुंजिकास्तोत्रमंत्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः,श्रीत्रिगुणात्मिका देवता, ॐ ऐं बीजं, ॐ ह्रीं शक्तिः, ॐ क्लीं कीलकम्,मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । शिव उवाच शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् । येन मंत्रप्रभावेण चंडीजापः शुभो भवेत् ॥ 1 ॥ न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् । न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥ 2 ॥ कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् । अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3 ॥ गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति । मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनोच्चाटनादिकम् । पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ 4 ॥ अथ मंत्रः । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे । ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वलऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ 5 ॥ इति मंत्रः । नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि । नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥ 6 ॥ नमस्ते शुंभहंत्र्यै च निशुंभासुरघातिनि । जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥ 7 ॥ ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका । क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥ 8 ॥ चामुंडा चंडघाती च यैकारी वरदायिनी । विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि ॥ 9 ॥ धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी । क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥ 10 ॥ हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जंभनादिनी । भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥ 11 ॥ अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षम् । धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 12 ॥ पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा । सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥ 13 ॥ कुंजिकायै नमो नमः । इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे । अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ 14 ॥ यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् । न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥ 15 ॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।
- रुद्राष्टकम् का पाठ क्यों करें? -हिन्दी अनुवाद सहित
श्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र तुलसीदास द्वारा भगवान् शिव की स्तुति हेतु रचित छंद है। इसका उल्लेख श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में आता है। तुलसीदास कलियुग के कष्टों का वर्णन करते हैं और उससे मुक्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ करने का सुझाव देते हैं। श्री रुद्राष्टकम्: भगवान शिव की स्तुति का महान छंद श्री रुद्राष्टकम्, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो भगवान शिव की महिमा और कृपा का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का उल्लेख श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में मिलता है। तुलसीदास जी ने इस महान छंद में कलियुग के कष्टों का वर्णन करते हुए भगवान शिव की आराधना को उनके समाधान के रूप में प्रस्तुत किया है। यह स्तोत्र भुजङ्प्रयात् छंद में लिखा गया है और माना जाता है कि इसकी नियमित जाप से सभी संकट पल-भर में दूर हो जाते हैं। शिव रुद्राष्टकम का महत्व शिव रुद्राष्टकम पाठ भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावशाली साधन माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में आनंद, मनोबल और सौभाग्य की वृद्धि होती है, और शत्रुओं का नाश होता है। इसे लगातार 7 दिन तक सुबह-शाम करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और व्यक्ति का जीवन सुखमय बनता है। इस महान स्तोत्र का जाप करने से भक्तों को शिव जी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन के हर क्षेत्र में शांति और समृद्धि आती है। शिव रुद्राष्टकम का पाठ शिव रुद्राष्टकम का पाठ भगवान शिव की आराधना का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसके नियमित पाठ से भक्तों को उनके जीवन में आने वाले कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। तुलसीदास जी ने इस स्तोत्र में भगवान शिव की महिमा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, जिससे यह स्तोत्र शिवभक्तों के लिए एक अमूल्य धरोहर बन गया है। पाठ विधि तैयारी : शिव रुद्राष्टकम का पाठ करने से पहले, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्थान : किसी शांत और पवित्र स्थान पर बैठकर पाठ करें। संकल्प : मन में भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का संकल्प लें। पाठ : श्री रुद्राष्टकम का पाठ करें, और शिव जी का ध्यान करें। श्री रुद्राष्टकम भगवान शिव की महिमा का अद्वितीय स्तोत्र है, जो भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है। इसका नियमित पाठ जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। इस स्तोत्र का प्रभाव इतना शक्तिशाली है कि इसके पाठ से जीवन के सभी संकट और समस्याएं दूर हो जाती हैं। शिव रुद्राष्टकम पाठ भगवान शिव की आराधना का एक अनमोल साधन है, जो प्रत्येक शिवभक्त के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भक्तिभाव से भरे इस स्तोत्र का जाप करके हम भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं। जय शिव शंकर! रुद्राष्टकम् नमामीशमीशान निर्वाणरूपंविभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ 1 ॥ निराकारमोंकारमूलं तुरीयंगिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् । करालं महाकालकालं कृपालुंगुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥ 2 ॥ तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरंमनोभूतकोटिप्रभासी शरीरम् । स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगालसद्भालबालेंदु कंठे भुजंगम् ॥ 3 ॥ चलत्कुंडलं शुभ्रनेत्रं विशालंप्रसन्नाननं नीलकंठं दयालुम् । मृगाधीशचर्मांबरं मुंडमालंप्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ 4 ॥ प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशंअखंडं भजे भानुकोटिप्रकाशम् । त्रयीशूलनिर्मूलनं शूलपाणिंभजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ 5 ॥ कलातीतकल्याणकल्पांतकारीसदासज्जनानंददाता पुरारी । चिदानंदसंदोहमोहापहारीप्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ 6 ॥ न यावदुमानाथपादारविंदंभजंतीह लोके परे वा नराणाम् । न तावत्सुखं शांति संतापनाशंप्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ 7 ॥ न जानामि योगं जपं नैव पूजांनतोऽहं सदा सर्वदा देव तुभ्यम् । जराजन्मदुःखौघतातप्यमानंप्रभो पाहि शापान्नमामीश शंभो ॥ 8 ॥ रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतुष्टये । ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शंभुः प्रसीदति ॥ 9 ॥ ॥ इति श्रीरामचरितमानसे उत्तरकांडे श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥ हिन्दी अनुवाद जो मोक्षस्वरूप, जो सर्वत्र विराजमान हैं , ब्रह्म और वेद स्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निज स्वरूप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणातीत, इच्छा रहित, नित्य चेतन आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त प्रभु को प्रणाम करता हूँ। ॥१॥ निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमन करता हूँ।॥२॥ जो हिमाचल पर्वत के समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चंद्र और गले में सर्प सुशोभित है।॥३॥ जिनके कानों में कुण्डल चलायमान हैं, सुंदर और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ और दयालु हैं, जो सिंहचर्म और जिनको मुंडमाल धारण करना प्रिय हैं, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं प्रणाम हूँ।॥४॥ प्रचण्ड (रुद्र रूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार कर दुःख (आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक) नाश करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले ऐसे भवानी के पति श्री शंकर को मैं प्रणाम हूँ।॥५॥ सम्पूर्ण कलाओं से पूर्ण,, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को आनंद प्रदान करने वाले, तीनों लोकों के स्वामी।, जो सत् चित आनंद है और मोह को हरने वाले महादेव प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।॥६॥ आपके कमल समान चरण के वंदना के द्वारा इह लोक और पर लोक में सुख प्रदान करने वाले और समस्त तापों का नाश करने वाले, समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभु , प्रसन्न होइये।॥७॥ मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। वृद्धावस्था, जन्म, दु:खों आदि से संतप्त दु:खों से रक्षा करें। हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।॥८॥ विद्वानों द्वारा कहे हुए जो भगवान रुद्र का यह अष्टक का पाठ करता है। उससे भगवान शंकर अति प्रसन्न होते हैं।
- आत्मविश्वास प्राप्त करने के लिए आंजनेय स्तोत्र का करें पाठ
हनुमान जी हिंदू धर्म में सर्वोच्च देवता और श्री राम के परम भक्त माने जाते हैं। उनका जन्म चैत्र पूर्णिमा को हरियाणा के कैथल जिले में हुआ था। उन्हें आंजनेय, मारुतिनंदन और केसरीनंदन के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने राम और सीता के पुनर्मिलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देवी काली के द्वारपाल के रूप में पूजित हैं। शिव पुराण में हनुमान को शिव और मोहिनी के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। उनकी उपासना से आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन में सकारात्मकता आती है। हनुमान जी चिरंजीवी हैं और आज भी अपने भक्तों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। हनुमान जी: भक्त, देवता और चिरंजीवी हनुमान जी का नाम हिंदू धर्म में सर्वोच्च स्थान पर है। वे श्री राम के परम भक्त हैं और उनकी निष्ठा और समर्पण का प्रतीक हैं। हनुमान जी को उनके विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे आंजनेय, मारुतिनंदन और केसरीनंदन। हनुमान जी का जन्म हनुमान जी का जन्म त्रेता युग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र और मेष लग्न में हरियाणा राज्य के कैथल जिले में हुआ था, जिसे पूर्व में कपिस्थल कहा जाता था। माता अंजनी और वानरों के राजा केसरी के पुत्र होने के कारण वे आंजनेय और केसरीनंदन के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। वायु देव के आशीर्वाद से जन्म लेने के कारण उन्हें मारुतिनंदन भी कहा जाता है। राम भक्त हनुमान हनुमान जी की गाथाओं में सबसे महत्वपूर्ण घटना श्री राम के साथ उनकी भक्ति और सेवा की है। उन्होंने ही राजा सुग्रीव से राम की मित्रता कराई, जिससे जानकी से राम का पुनर्मिलन संभव हो सका। उनकी निस्वार्थ सेवा और अडिग विश्वास ने उन्हें रामायण के नायक के रूप में स्थापित किया। देवी काली और हनुमान कृतिवासी रामायण में हनुमान का संबंध देवी काली से भी माना जाता है। इसके अनुसार, देवी काली ने हनुमान को द्वारपाल होने का आशीर्वाद दिया। इसलिए, देवी मंदिरों के प्रवेश द्वार पर भैरव और हनुमान विराजित होते हैं। हनुमान और शिव पुराण शिव पुराण के दक्षिण भारतीय संस्करण में, हनुमान को शिव और मोहिनी (विष्णु का स्त्री अवतार) के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। कुछ मान्यताओं में, उनकी पौराणिक कथाओं को स्वामी अय्यप्पा के साथ जोड़ा या विलय कर दिया गया है, जो दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय हैं। आत्मविश्वास के लिए हनुमान जी की उपासना यदि किसी व्यक्ति को आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है, या दूसरों के सामने अपनी बात कहने में कठिनाई होती है, तो उसे प्रत्येक मंगलवार को आंजनेय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह स्तोत्र आत्मविश्वास बढ़ाने और साहस देने में सहायक होता है। हनुमान जी की पूजा का महत्व हनुमान जी की पूजा करने से व्यक्ति को साहस, शक्ति और निष्ठा की प्राप्ति होती है। उनकी भक्ति से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है। हनुमान जी चिरंजीवी हैं, अर्थात वे आज भी पृथ्वी लोक में निवास करते हैं और अपने भक्तों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। हनुमान जी की भक्ति और पूजा से जीवन में सकारात्मकता और उत्साह का संचार होता है। उनकी निस्वार्थ सेवा और अडिग विश्वास हमें प्रेरणा देते हैं कि हम भी अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना धैर्य और साहस के साथ करें। जय हनुमान! श्री राम दूत आंजनेय स्तोत्रम् (रं रं रं रक्तवर्णम्) रं रं रं रक्तवर्णं दिनकरवदनं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालंरं रं रं रम्यतेजं गिरिचलनकरं कीर्तिपंचादि वक्त्रम् । रं रं रं राजयोगं सकलशुभनिधिं सप्तभेतालभेद्यंरं रं रं राक्षसांतं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 1 ॥ खं खं खं खड्गहस्तं विषज्वरहरणं वेदवेदांगदीपंखं खं खं खड्गरूपं त्रिभुवननिलयं देवतासुप्रकाशम् । खं खं खं कल्पवृक्षं मणिमयमकुटं माय मायास्वरूपंखं खं खं कालचक्रं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 2 ॥ इं इं इं इंद्रवंद्यं जलनिधिकलनं सौम्यसाम्राज्यलाभंइं इं इं सिद्धियोगं नतजनसदयं आर्यपूज्यार्चितांगम् । इं इं इं सिंहनादं अमृतकरतलं आदिअंत्यप्रकाशंइं इं इं चित्स्वरूपं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 3 ॥ सं सं सं साक्षिभूतं विकसितवदनं पिंगलाक्षं सुरक्षंसं सं सं सत्यगीतं सकलमुनिनुतं शास्त्रसंपत्करीयम् । सं सं सामवेदं निपुण सुललितं नित्यतत्त्वस्वरूपंसं सं सं सावधानं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 4 ॥ हं हं हं हंसरूपं स्फुटविकटमुखं सूक्ष्मसूक्ष्मावतारंहं हं हं अंतरात्मं रविशशिनयनं रम्यगंभीरभीमम् । हं हं हं अट्टहासं सुरवरनिलयं ऊर्ध्वरोमं करालंहं हं हं हंसहंसं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 5 ॥ इति श्री रामदूत स्तोत्रम् ॥
- हेल्दी स्किन के लिए - करें कुछ सरल उपाय
हेल्दी स्किन के लिए एक उचित स्किन केयर रूटीन अपनाना आवश्यक है, जिसमें फेस मास्क का उपयोग फायदेमंद हो सकता है। फेस मास्क से त्वचा साफ और चमकदार होती है, लेकिन इसे चुनते समय अपनी स्किन टाइप का ध्यान रखना जरूरी है। सर्दियों में त्वचा रूखी हो जाती है जबकि गर्मी और मानसून में अतिरिक्त तेल की समस्या होती है। क्रीम-बेस्ड मास्क शुष्क त्वचा के लिए, जेल मास्क संवेदनशील त्वचा के लिए, क्ले मास्क तैलीय और मुंहासे वाली त्वचा के लिए, और पील ऑफ मास्क सभी स्किन टाइप्स के लिए उपयुक्त होते हैं। ये मास्क त्वचा में नमी बनाए रखते हैं, तेल संतुलित करते हैं, और धूल, प्रदूषण, ब्लैकहेड्स, व्हाइटहेड्स और मृत कोशिकाओं से छुटकारा दिलाते हैं। प्राकृतिक अवयवों का उपयोग करते हुए इन मास्क का नियमित प्रयोग त्वचा को कोमल और स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता। हेल्दी स्किन के लिए हमें एक प्रॉपर स्किन केयर रूटीन अपनाना चाहिए। फेस मास्क का इस्तेमाल करना फायदेमंद हो सकता है। फेस मास्क से चेहरे की त्वचा साफ होने के साथ-साथ ग्लो भी करती है। हमें फेस-मास्क चुनते समय भी बेहद सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। कई बार अपनी स्किन टाइप को ध्यान में रखे बिना कोई भी ब्यूटी प्रोडक्ट का इस्तेमाल नुकसानदायक हो सकता है। सर्दियों के दौरान त्वचा रूखी हो जाती है , जबकि गर्मी, मानसून में आपकी त्वचा को ऐसे फेस मास्क की आवश्यकता होती है, जो अतिरिक्त तेल को त्वचा से सोख ले. ऐसे में फेशियल मास्क आपके काम आ सकता है. इसके नियमित प्रयोग से मुंहासे भी कम होते हैं, त्वचा में चमक बढ़ती है। स्किन ऑयल बनना नियंत्रण में रहत है और सूखी त्वचा में नमी बनी रहती है। क्रीम-बेस्ड मास्क सामान्य रूप से शुष्क त्वचा के लिए जादू सा काम करते हैं। ये मास्क स्किन में नमी बनाए रखते हैं और दिहायीड्रेशन से रक्षा करते हैं। इसके प्रयोग से स्किन स्वच्छ नजर आती है। इसके लिए हम नारियल का तेल और मक्खन का प्रयोग कर सकते हैं। जेल मास्क भी स्किन को नमी प्रदान करने में प्रमुख हैं। यह मसाज संवेदनशील त्वचा के लिए बहुत लाभकारी है। यह त्वचा में जल्दी अवशोषित हो जाते हैं और त्वचा में आसानी से घुलमिल जाते हैं। इसके लिए हम एलोवेरा, पुदीना, ग्रीन टी आदि पदार्थों का प्रयोग कर सकते हैं। यह आपकी त्वचा को कोमल बनाए रखने में उपयोगी होगा। क्ले मास्क तैलीय और मुंहासे वाली त्वचा के लिए क्ले मास्क काफी उपयोगी है। यह स्किन में तेल को संतुलित रखता है। ये मास्क धूल, प्रदूषकों, ब्लैकहेड्स और गंदगी से छुटकारा पाने के साथ-साथ त्वचा को चिकना और मुलायम बनाए रखने में काफी उपयोगी है। पारंपरिक रूप से हम मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग कर सकते हैं। हम लैक्टिक और साइट्रिक एसिड वाला मास्क तैलीय त्वचा के लिए आदर्श है। पील ऑफ मास्क त्वचा पर तुरंत ग्लो पाने के लिए इसका प्रयोग काफी गुणकारी होता है। यह त्वचा की सबसे ऊपरी परत से मृत कोशिकाओं, धूल, व्हाइटहेड्स, ब्लैकहेड्स और अन्य प्रदूषकों और तेल से आपके स्किन को सुरक्षित रखता है। यह मास्क सामान्यतः फल या पौधों पर आधारित होते हैं और इसे बनाने के लिए प्राकृतिक अवयवों का उपयोग किया जाता है। इसे सभी स्किन वाले प्रयोग में ला सकते हैं।
- संकटमोचन हनुमान अष्टक के पाठ से करें आध्यात्मिक विकास
वाराणसी में संकटमोचन का मंदिर है। यह मंदिर करीब चार सौ वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि तुलसीदास जी ने यहीं पर संकटमोचन हनुमानाष्टक की रचना की थी। ऐसा भी कहा जाता है कि यहीं पर तुलसीदास जी को पहली बार हनुमान जी का स्वप्न आया था। वृद्धावस्था में संत तुलसी दास जी को भुजाओं (बाहु) में असहनीय पीड़ा होने लगी थी, अतः उन्होंने हनुमान जी से अपनी पीड़ा की मुक्ति के लिए विनती की, तदन्तर हनुमान अष्टक और हनुमान बाहुक की रचना की थी। वैदिक ज्योतिष के अनुसार हनुमान मनुष्यों को शनि और मंगल ग्रह के दुष्प्रभावों से बचाते हैं। शनि के प्रकोप से मुक्ति के लिए लोग संकट मोचन मंदिर अवश्य आते हैं। हनुमान अष्टक का पाठ करने के लिए आप हनुमान जी की एक तस्वीर रखें। साथ ही श्री राम की तस्वीर को भी उसके साथ रखकर घी का दीपक जलाएं और साथ में तांबे के गिलास में पानी भरकर भी रख दें और तुलसी दल अर्पित करें। इसके बाद प्रेम भाव से हनुमान अष्टक का पाठ करें। पाठ समाप्त होने के पश्चात् तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल और तुलसी पत्र जिस किसी के हित के लिए भी यह पाठ किया गया हो उसे पिला दें। हम प्रतिदिन भी हनुमान अष्टक का पाठ कर सकते हैं। गोस्वामी तुलसीदास कृत संकटमोचन हनुमानाष्टक मत्तगयन्द छन्द बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो । ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ॥ देवन आन करि बिनती तब, छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 1 ॥ बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो । चौंकि महा मुनि शाप दिया तब, चाहिय कौन बिचार बिचारो ॥ के द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 2 ॥ अंगद के संग लेन गये सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो । जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो ॥ हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया-सुधि प्राण उबारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 3 ॥ रावन त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सों कहि शोक निवारो । ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो ॥ चाहत सीय अशोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 4 ॥ बाण लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावण मारो । लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ॥ आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्राण उबारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 5 ॥ रावण युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो । श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो ॥ आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 6 ॥ बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पाताल सिधारो । देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि, देउ सबै मिति मंत्र बिचारो ॥ जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावण सैन्य समेत सँहारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 7 ॥ काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि बिचारो । कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसों नहिं जात है टारो ॥ बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 8 ॥ ॥ दोहा ॥ लाल देह लाली लसे, अरू धरि लाल लंगूर । बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥ ॥ इति संकटमोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण ॥ हिंदी अनुवाद — हे बजरंगबलि हनुमान जी ! बचपन में आपने सूर्य को लाल फल समझकर निगल लिया था, जिससे तीनों लोकों में अंधेरा हो गया था। इससे सारे संसार में घोर विपत्ति छा गई थी । लेकिन इस संकट को कोई भी दूर न कर सका। जब सभी देवताओं ने आकर आपसे विनती की तब आपने सूर्य को अपने मुंह से बाहर निकाला और इस प्रकार सारे संसार का कष्ट दूर हुआ। हे वानर-रूपी हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आप हीं को सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है। अपने बड़े भाई बालि के डर से महाराज सुग्रीव किष्किंधा पर्वत पर रहते थें । जब महाप्रभु श्री राम लक्ष्मण के साथ वहाँ से जा रहे थे तब सुग्रीव ने आपको उनका पता लगाने के लिये भेजा। आपने ब्राह्मण का भेष बनाकर भगवान श्री राम से भेंट की और उनको अपने साथ ले आए, जिससे आपने महाराज सुग्रीव को कष्टों से बाहर निकाल कर उनका दुख दूर किया। हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है। सुग्रीव ने सीता माता की खोज के लिये अंगद के साथ वानरों को भेजते समय यह कह दिया था की यदि सीता माता का पता लगाए बिना यहाँ लौटे तो सबको मार दिया जाएगा। सब ढूँढ-ढूँढ कर निराश हो गये तब आप विशाल सागर को लाँघकर लंका गये और सीताजी का पता लगाया, जिससे सब के प्राण बच गये। हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है। अशोक वाटिका मे रावण ने सीताजी को कष्ट दिया, भय दिखाया और सभी राक्षसियों से कहा कि वे सीताजी को मनाएं, तब उसी समय आपने वहाँ पहुँचकर राक्षसों को मारा। जब सीता माता ने स्वयं को जलाकर भस्म करने के लिए अशोक वृक्ष से अग्नि कि विनती की, तभी आपने अशोक वृक्ष के ऊपर से भगवान श्रीराम की अंगूठी उनकी गोद में डाल दी जिससे सीता मैया शोक मुक्त हो गई। हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको ही सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है। लक्ष्मण की छाती में बाण मारकर जब मेघनाथ ने उन्हें मूर्छित कर दिया। उनके प्राण संकट में पड़ गये। तब आप वैद्य सुषेण को घर सहित उठा लाये और द्रोण पर्वत सहित संजीवनी बूटी लेकर आए जिससे लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा हुई। हे महावीर हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको ही सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है। रावण ने भीषण युद्ध करते हुए भगवान श्रीराम और लक्ष्मण सहित सभी योद्धाओं को नाग पाश में जकड़ लिया। तब श्री राम सहित समस्त वानर सेना संकट मे घिर गई, तब आपने ही गरुड़देव को लाकर सभी को नागपाश से मुक्त कराया। हे महावीर हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है। जब अहिरावण श्री राम और लक्ष्मण को उठाकर अपने साथ पाताल लोक में ले गया, उसने भली-भांति देवी की पूजा कर सबसे सलाह करके यह निश्चय किया की इन दोनों भाइयों की बलि दूँगा, उसी समय आपने वहाँ पहुँचकर भगवान श्रीराम की सहायता करके अहिरावण का उसकी सेना सहित संहार कर दिया। हे बजरंगबली हनुमान जी, इस संसार में ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है। हे वीरों के वीर महाप्रभु आपने देवताओं के तो बड़े-बड़े कार्य किये हैं । अब आप मेरी तरफ देखिए और विचार कीजिए कि मुझ गरीब पर ऐसा कौन सा संकट आ गया है जिसका निवारण आप नहीं कर सकते। हे महाप्रभु हनुमान जी, मेरे ऊपर जो भी संकट आया है उसे कृपा कर दूर करें । हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको ही सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।
- Recite 'Anjaneya Stotram' to gain self-confidence
Among Hindu deities, Hanuman holds the esteemed position of being the greatest. He is revered as the ultimate devotee of Lord Rama. Born to Anjani Mata, he is affectionately referred to as Anjaneya. As the offspring of the Wind God, he is also known as Marutinandan. Hanuman is believed to be immortal and continues to dwell on Earth. Being the son of King Kesari of the Vanar, he is also hailed as Kesarinandan. The tales of Hanuman are numerous and widely cherished. He played a pivotal role in fostering the friendship between Lord Rama and King Sugriva, leading to the joyous reunion of Rama and Sita. It is said that Hanuman was born in the last phase of Treta Yuga on Tuesday, Chaitra Purnima, in Chitra Nakshatra and Aries Lagna in the Kaithal district of Haryana state, which was formerly known as Kapisthal. In the Kritivasa Ramayana, Hanuman's connection with Goddess Kali is acknowledged with reverence. According to this version, the Goddess pleased Hanuman with the honour of guarding her temple gates. Consequently, both Bhairav and Hanuman are revered on either side of the temple entrance. In certain versions of the Shiva Purana from South India, Hanuman is depicted as the son of Shiva and Mohini (the female manifestation of Vishnu), or his mythical tales are intertwined with those of Swami Ayyappa, which hold significance in various parts of South India. For those who may struggle with self-assurance or feel hesitant to express themselves, it is recommended to recite the Anjaney Stotram with devotion every Tuesday. श्री राम दूत आंजनेय स्तोत्रम् (रं रं रं रक्तवर्णम्) रं रं रं रक्तवर्णं दिनकरवदनं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालंरं रं रं रम्यतेजं गिरिचलनकरं कीर्तिपंचादि वक्त्रम् । रं रं रं राजयोगं सकलशुभनिधिं सप्तभेतालभेद्यंरं रं रं राक्षसांतं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 1 ॥ खं खं खं खड्गहस्तं विषज्वरहरणं वेदवेदांगदीपंखं खं खं खड्गरूपं त्रिभुवननिलयं देवतासुप्रकाशम् । खं खं खं कल्पवृक्षं मणिमयमकुटं माय मायास्वरूपंखं खं खं कालचक्रं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 2 ॥ इं इं इं इंद्रवंद्यं जलनिधिकलनं सौम्यसाम्राज्यलाभंइं इं इं सिद्धियोगं नतजनसदयं आर्यपूज्यार्चितांगम् । इं इं इं सिंहनादं अमृतकरतलं आदिअंत्यप्रकाशंइं इं इं चित्स्वरूपं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 3 ॥ सं सं सं साक्षिभूतं विकसितवदनं पिंगलाक्षं सुरक्षंसं सं सं सत्यगीतं सकलमुनिनुतं शास्त्रसंपत्करीयम् । सं सं सामवेदं निपुण सुललितं नित्यतत्त्वस्वरूपंसं सं सं सावधानं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 4 ॥ हं हं हं हंसरूपं स्फुटविकटमुखं सूक्ष्मसूक्ष्मावतारंहं हं हं अंतरात्मं रविशशिनयनं रम्यगंभीरभीमम् । हं हं हं अट्टहासं सुरवरनिलयं ऊर्ध्वरोमं करालंहं हं हं हंसहंसं सकलदिशयशं रामदूतं नमामि ॥ 5 ॥ इति श्री रामदूत स्तोत्रम् ॥
- All the Lords of Gayatri Mantras
गायत्री मंत्र का विस्तार सर्व प्राचीन ऋग्वेद से लिया गया है। ऋग्वेद की रचना आज से 2500- 3500 वर्ष पूर्व हुई थी। इस मंत्र के दृष्टा ब्रह्मर्षि विश्वामित्र हैं। ॐ भूर्भुवः स्वः यह मंत्र युजर्वेद से लिया गया है, यह एक महाव्याहृति के रूप में है, यह एक महान् आध्यात्मिक कथन है। इस मंत्र का प्रयोग कई अन्य मंत्रों से पूर्व किया जाता है। जिसका अर्थ है पृथिवी, स्वर्ग और जो कुछ भी उसके आगे है उससे अपने आप को जोड़ना उससे संबंध बनाना, उस परम् ऊर्जा को अपने में समाहित करना, इस दिव्य शक्ति से एकाकार होना। तत् का तात्पर्य है वह। वह जो अवर्णनीय है, अतुलनीय है। सवितुर् का तात्पर्य है सूर्य, सविता, ज्ञान या विवेक जो सभी को प्रेरित करता है, सभी का प्राण तत्व है, जो सभी में विराजमान है। एक दिव्य प्रकाश जो सबका सार तत्व है। वरेण्यम का अर्थ है, अराधना करना, हम उस ब्रह्मांड या उससे भी परे उस दिव्यता को प्रणाम करते हैं। अगली पंक्ति है भर्गो देवास्य धीमहि अर्थात् उस दिव्यता का ही निरंतर चिंतन करते रहना, उसी के नाद में ध्वनित होते रहना। अंतिम पंक्ति है धियो योनः प्रचोदयात् हम उसकी दिव्य बुद्धि, परम प्रकाश या परम ज्ञान का ही ध्यान करते हैं, सदैव उसी में निवास करते हैं। ॐ भूर्भुवः स्वः (तैत्तिरीय आरण्यक, यजुर्वेद) तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् (ऋग्वेद 3/62/10) गायत्री मंत्र जाप कब करें— 1. सूर्योदय से पूर्व 2. दोपहर में 3. सूर्यास्त से पूर्व गायत्री मंत्र जाप से लाभ— 1. मन की शांति और एकाग्रता के लिए गायत्री मंत्र का जाप करना कहिए। 2. गायत्री मंत्रों के जाप से दुःख, कष्ट, दरिद्रता और पाप दूर होते हैं। 3. संतान प्राप्ति के लिए भी गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है। 4. कार्यों में सफलता, करियर में उन्नति आदि के लिए भी गायत्री मंत्र का जाप करना श्रेयस्कर है। 5. विरोधियों या शत्रुओं में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए घी एवं नारियल के बुरा का हवन करें और गायत्री मंत्र का जाप करते रहें। 6. स्मरण शक्ति के विकास के लिए गायत्री मंत्र का जाप प्रतिदिन करना चाहिए। अब हम सभी देवताओं के गायत्री मंत्र देखेंगे। शिव गायत्री मन्त्रः ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ महादे॒वाय॑ धीमहि । तन्नो॑ रुद्रः प्रचो॒दया᳚त् ॥ शिव गायत्री मंत्र का जाप करने से सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ती होती है। इस मंत्र का जाप करने से पाप का नाश होता है, मानसिक शांति मिलती है और व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। पूजा में इस मंत्र का जाप करने से शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। पितृदोष, कालसर्प दोष, राहु-केतु तथा शनि दोष की शांति के लिए शिव गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। गणपति गायत्री मन्त्रः ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ वक्रतु॒ण्डाय॑ धीमहि । तन्नो॑ दन्तिः प्रचो॒दया᳚त् ॥ गणपती गायत्री मंत्र का जप प्रतिदिन किया जाए, तो सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सफलता और सुख समृद्धि आती है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है. धर्म शास्त्र में इस मंत्र का प्रयोग हर सफलता के लिए सिद्ध माना गया है। यह मंत्र रोग और शत्रुओं पर विजय दिलाता है. नन्दि गायत्री मन्त्रः ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ चक्रतु॒ण्डाय॑ धीमहि । तन्नो॑ नन्दिः प्रचो॒दया᳚त् ॥ पौराणिक कथाओं के अनुसार नंदी जी को भगवान शिव की सभी शक्तियां प्राप्त है। इस वजह से भगवान शिव के आशीर्वाद के लिए नंदी जी का प्रसन्न होना बहुत ही आवश्यक है। नंदी गायत्री मंत्र का प्रतिदिन जाप करने से मनुष्य ज्ञान और बुद्धि में श्रेष्ठ हो जाता है। यह मंत्र शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है। सुब्रह्मण्य गायत्री मन्त्रः ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ महासे॒नाय॑ धीमहि । तन्नः षण्मुखः प्रचो॒दया᳚त् ॥ इस मंत्र के नरन्तर जाप से सभी प्रकार के शत्रुओं का नाश होता है। गरुड गायत्री मन्त्रः ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ सुवर्णप॒क्षाय॑ धीमहि । तन्नो॑ गरुडः प्रचो॒दया᳚त् ॥ इस मंत्र के जाप से सर्पों का भय समाप्त हो जाता है। काला जादू या नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है। कुंडली में राहू, केतु के दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। ब्रह्म गायत्री मन्त्रः ॐ-वेँ॒दा॒त्म॒नाय॑ वि॒द्महे॑ हिरण्यग॒र्भाय॑ धीमहि । तन्नो॑ ब्रह्मः प्रचो॒दया᳚त् ॥ ब्रह्म गायत्री मंत्र की का जाप करने से यश, धन, संपत्ति आदि की प्राप्ति होती है। यह मंत्र चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति करने वाला है। यह मंत्र मृत्यु के पश्चात ब्रह्मलोक का मार्ग प्रशस्त करता है। विष्णु गायत्री मन्त्रः ॐ ना॒रा॒य॒णाय॑ वि॒द्महे॑ वासुदे॒वाय॑ धीमहि । तन्नो॑ विष्णुः प्रचो॒दया᳚त् ॥ इस मंत्र के जाप से पारिवारिक कलह से मुक्ति और सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। श्री लक्ष्मि गायत्री मन्त्रः ॐ म॒हा॒दे॒व्यै च वि॒द्महे॑ विष्णुप॒त्नी च॑ धीमहि । तन्नो॑ लक्ष्मी प्रचो॒दया᳚त् ॥ इस मंत्र का जाप करने से माता लक्ष्मी की असीम कृपा बरसती है। माना जाता है कि रोजाना कमलगट्टे की माला से महालक्ष्मी गायत्री मंत्र का जाप करने से कर्ज से मुक्ति मिल जाती है और देवी लक्ष्मी की कृपा उनके भक्तों पर बनी रहती है। नरसिंह गायत्री मन्त्रः ॐ-वँ॒ज्र॒न॒खाय वि॒द्महे॑ तीक्ष्णद॒ग्ग्-ष्ट्राय॑ धीमहि । तन्नो॑ नरसिग्ंहः प्रचो॒दया᳚त् ॥ इस मंत्र के जाप से तांत्रिक मंत्र, बाधा, भूत, पिशाच और अकाल मृत्यु के भय से छुटकारा मिलता है। इन मंत्र का जाप करने से सभी दुःख दूर हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त मंत्र का जाप करते समय नरसिंह देवता को एक मोर पंख अर्पित करना चाहिए। इससे कालसर्प दोष दूर होता है और धन में वृद्धि होती है। सूर्य गायत्री मन्त्रः ॐ भा॒स्क॒राय॑ वि॒द्महे॑ महद्द्युतिक॒राय॑ धीमहि । तन्नो॑ आदित्यः प्रचो॒दया᳚त् ॥ इस मंत्र का जाप करने से जगत में यश और सम्मान की प्राप्ति होती है। कुंडली में यदि सूर्य दुर्बल हो तो इस मंत्र का जाप करना चहिए, इससे आत्मबल की वृद्धि होती है, और नेत्र विकार भी दूर होते हैं। अग्नि गायत्री मन्त्रः ॐ-वैँ॒श्वा॒न॒राय॑ वि॒द्महे॑ लाली॒लाय धीमहि । तन्नो॑ अग्निः प्रचो॒दया᳚त् ॥ अग्नि को इंद्र का जुड़वा भाई कहा जाता है। वह इंद्र के ही समान बलशाली और शक्तिशाली हैं। वेदों में अग्नि को वैश्वानर अग्नि (विश्व को कार्य में संलग्न रखने वाली ऊर्जा) के रूप में प्रार्थना की गई है। पुराणों में अग्नि की पत्नी का नाम स्वाहा बताया गया है और इनके तीन पुत्र– पावक, पवमान और शुचि हैं। अग्नि ही हवन में अर्पित समिधा को देवताओं तक पहुंचाती है। अग्नि गायत्री मंत्र से आप के अंदर ऊर्जा का विकास होगा। दुर्गा गायत्री मन्त्रः ॐ का॒त्या॒य॒नाय॑ वि॒द्महे॑ कन्यकु॒मारि॑ धीमहि । तन्नो॑ दुर्गिः प्रचो॒दया᳚त् ॥ इस मंत्र का जाप उन लोगों के लिए अच्छा है जो किसी भी प्रकार के भय से मुक्त होना चाहते हैं। इस मंत्र से आत्मविश्वास की वृद्धिहोती है। दुर्गा गायत्री मंत्र बुद्धि और शांति के साथ-साथ समृद्धि और सौभाग्य भी लाता है। नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करने से जीवन की परेशानियां और मानसिक समस्याएं दूर होती हैं। The Gayatri Mantra is among the most ancient and revered mantras, originating from the Rig Veda, which was composed 2500-3500 years ago. The seer of this mantra is Brahmarishi Vishwamitra. The initial part of the mantra, "Om Bhur Bhuvah Svaha," is derived from the Yajur Veda and is known as the Mahavyahriti, a great spiritual utterance. This mantra is often used before other mantras. Its essence is to establish a connection with the earth, the heavens, and whatever lies beyond, allowing one to absorb the supreme energy and unite with the divine power. Breakdown of the Gayatri Mantra: Om Bhur Bhuvah Svaha: Bhur: Represents the earth. Bhuvah: Represents the heavens. Svaha: Represents that which is beyond. This phrase signifies connecting with the terrestrial, celestial, and transcendental realms, absorbing their supreme energies, and becoming one with the divine power. Tat Savitur Varenyam: Tat: Refers to the indescribable and incomparable divine essence. Savitur: Means the Sun, representing Savita (the divine light), knowledge, and wisdom that inspires and sustains all life. Varenyam: This means that it is worthy of worship, signifying reverence towards the divinity that permeates the universe and beyond. Bhargo Devasya Dhimahi: This line means to meditate on that divine radiance, to keep the mind resonating with its essence. Dhiyo Yonah Prachodayat: This line means to continuously meditate on divine wisdom, supreme light, and ultimate knowledge, ensuring that we always dwell in this divine presence. Complete Gayatri Mantra: Om Bhur Bhuvah SvahTat Savitur Varenyam Bhargo Devasya Dhimahi Dhiyo Yonah Prachodayat Om Bhurbhuvah Svah (from Taittiriya Aranyaka, Yajur Veda) Tat Savitur Varenyam Bhargo Devasya Dhimahi Dhiyo Yonah Prachodayat (Rig Veda 3/62/10) This ancient mantra invokes the divine light of the Sun, invoking it to illuminate our intellect and guide us toward righteousness and wisdom. ॐ भूर्भुवः स्वः (तैत्तिरीय आरण्यक, यजुर्वेद) तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् (ऋग्वेद 3/62/10) When to Chant the Gayatri Mantra Before Sunrise In the Afternoon Before Sunset Benefits of Chanting the Gayatri Mantra Peace of Mind and Concentration: Chanting the Gayatri Mantra calms the mind and enhances focus. Alleviates Sorrow and Pain: It is believed to remove sorrow, pain, poverty, and sins. For Childbirth: The mantra is often chanted to bless couples with children. Career Success: It is beneficial for achieving success in work and advancing in one’s career. Supremacy Over Opponents: To establish dominance over adversaries, perform a havan with ghee and coconut powder while chanting the mantra. Improved Memory: Daily chanting of the Gayatri Mantra helps in developing memory power. Gayatri Mantras for Various Deities: Shiva Gayatri Mantra ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ महादे॒वाय॑ धीमहि । तन्नो॑ रुद्रः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Chanting the Shiva Gayatri Mantra brings happiness, prosperity, and wealth. It destroys sins, grants mental peace, and generates positive energy. It is especially effective for pacifying Pitra, Kalsarp, Rahu-Ketu, and Shani Doshas. Ganpati Gayatri Mantra ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ वक्रतु॒ण्डाय॑ धीमहि । तन्नो॑ दन्तिः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Daily chanting of the Ganpati Gayatri Mantra removes obstacles and brings success, happiness, and prosperity. It provides mental peace and is known for achieving success in various endeavours and victory over diseases and enemies. Nandi Gayatri Mantra ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ चक्रतु॒ण्डाय॑ धीमहि । तन्नो॑ नन्दिः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Nandi Ji embodies all the powers of Lord Shiva. Chanting the Nandi Gayatri Mantra daily enhances knowledge and wisdom and relieves physical suffering. Subrahmanya Gayatri Mantra ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ महासे॒नाय॑ धीमहि । तन्नः षण्मुखः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Continuous chanting of this mantra destroys all enemies and obstacles. Garuda Gayatri Mantra ॐ तत्पुरु॑षाय वि॒द्महे॑ सुवर्णप॒क्षाय॑ धीमहि । तन्नो॑ गरुडः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Chanting the Garuda Gayatri Mantra removes the fear of snakes and protects against black magic and negative forces. It also provides relief from Rahu, Ketu, and Kalsarpa defects in the horoscope. Brahma Gayatri Mantra ॐ-वेँ॒दा॒त्म॒नाय॑ वि॒द्महे॑ हिरण्यग॒र्भाय॑ धीमहि । तन्नो॑ ब्रह्मः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Chanting the Brahma Gayatri Mantra brings fame, wealth, and prosperity. It helps in achieving the four aims of human life and paves the way to Brahmaloka after death. Vishnu Gayatri Mantra ॐ ना॒रा॒य॒णाय॑ वि॒द्महे॑ वासुदे॒वाय॑ धीमहि । तन्नो॑ विष्णुः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Chanting this mantra brings freedom from family disputes and leads to happiness and prosperity. Sri Lakshmi Gayatri Mantra ॐ म॒हा॒दे॒व्यै च वि॒द्महे॑ विष्णुप॒त्नी च॑ धीमहि । तन्नो॑ लक्ष्मी प्रचो॒दया᳚त् ॥ Chanting this mantra bestows the infinite blessings of Goddess Lakshmi. It is believed to free one from debt and ensure the continuous blessings of Goddess Lakshmi. Narasimha Gayatri Mantra ॐ-वँ॒ज्र॒न॒खाय वि॒द्महे॑ तीक्ष्णद॒ग्ग्-ष्ट्राय॑ धीमहि । तन्नो॑ नरसिग्ंहः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Chanting this mantra relieves one from fears of tantric mantras, obstacles, ghosts, and premature death. It removes all sorrows and is beneficial for wealth accumulation. Offering a peacock feather to Lord Narasimha while chanting removes Kalsarp Dosh. Sun Gayatri Mantra ॐ भा॒स्क॒राय॑ वि॒द्महे॑ महद्द्युतिक॒राय॑ धीमहि । तन्नो॑ आदित्यः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Chanting this mantra brings fame and respect. It increases self-confidence and cures eye disorders, especially if the Sun is weak in the horoscope. Agni Gayatri Mantra ॐ-वैँ॒श्वा॒न॒राय॑ वि॒द्महे॑ लाली॒लाय धीमहि । तन्नो॑ अग्निः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Agni, Indra's twin brother, is as strong and powerful as Indra. Chanting the Agni Gayatri Mantra develops energy within and ensures the samidha offer to the Gods. Durga Gayatri Mantra ॐ का॒त्या॒य॒नाय॑ वि॒द्महे॑ कन्यकु॒मारि॑ धीमहि । तन्नो॑ दुर्गिः प्रचो॒दया᳚त् ॥ Chanting the Durga Gayatri Mantra is beneficial for overcoming any fear. It increases self-confidence and brings wisdom, peace, prosperity, and good fortune. Regular chanting removes troubles and mental problems. By incorporating these mantras into daily practice, one can invoke the blessings and divine energies of various deities, leading to a harmonious and prosperous life.
- Unlock Miraculous Blessings: Recite Shivashtak on Pradosh Fast
Pradosh Vrat observed Trayodashi Tithi on both fortnights of every month, which holds profound significance in Hindu tradition. Often, while Ekadashi is associated with Vishnu, Pradosh is revered in connection with Shiva. Legend has it that Lord Shiva once cured the Moon of tuberculosis on a Trayodashi Tithi, bestowing upon the day the name Pradosh. Like Ekadashi, Pradosh occurs twice a month on Trayodashi, both being linked to the Moon. Those who observe fasting and consume fruits on Pradosh strengthen the Moon in their horoscopes, consequently enhancing Venus and Mercury. This alignment of celestial bodies is believed to bring auspiciousness into one's life, simplifying the journey ahead and eradicating unfavourable influences. The glory of Pradosh varies depending on the day it falls upon. For instance, Pradosh on Sunday is known as Ravi-Pradosh, on Monday as Som-Pradosh, and so forth. Each day's Pradosh is accompanied by its unique significance, fulfilling various desires and aspirations. For example, Shani Pradosh is believed to fulfil the desire for progeny. Observing Pradosh Vrat is a revered method of pleasing Lord Shiva and inviting blessings of happiness, prosperity, and abundance into one's life. Worshipping Shiva during the Pradosh period is highly auspicious, with historical accounts suggesting that even Ravana attained siddhis by pleasing Shiva during this time. Devotees often recite the Shivashtakam hymn during Pradosh Vrat, seeking blessings for a blissful life filled with familial happiness and material wealth. This fast is straightforward yet immensely rewarding, offering a plethora of fruits. Its sanctity is extolled in ancient scriptures like the Skandha Purana. On the day of Pradosh Vrat, devotees purify themselves through morning bathing and fasting while keeping Lord Shiva in mind. An hour before sunset, they take another bath and prepare worship materials, including fragrances, flowers, incense sticks, and offerings. Seated facing northeast, they worship Lord Shiva, offering water while chanting the Panchakshar Mantra and presenting seasonal fruits. Devotees fervently pray for the fulfilment of their wishes, seeking blessings not only from Shiva but also from Parvati and Nandi. It's advised not to offer vermillion, turmeric, Tulsi, Ketaki, or coconut water to Lord Shiva on this day. प्रदोष व्रत प्रत्येक माह दोनों पक्षों में त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। प्रायः ये देखा जाता है कि एकादशी को लोग विष्णु से और प्रदोष को शिव से जोड़ कर देखते हैं। कहा जाता है कि एक बार चंद्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गए थे, तो भगवान शिव ने त्रयोदशी तिथि को ही उन्हें रोग से मुक्त कर दिया था। तभी से इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। एकादशी की तरह यह भी महीने में दो बार त्रयोदशी के दिन पड़ता है। एकादशी और त्रयोदशी दोनों का संबंध चंद्रमा से है, अतः इस दिन जो व्रत रख कर फलाहार करता है, वह कुंडली में अपने चंद्रमा को मजबूत करता है। माना जाता है कि चंद्रमा सुधारने से शुक्र भी सुधर जाता है, और शुक्र सुधरने से बुध भी अपने-आप ठीक हो जाता है। इस तरह से तीनों ग्रह शुभ फलदायी हो जाते हैं और जीवन सरल हो जाता है। इस व्रत से आप अशुभ संस्कारों को भी नष्ट कर सकते हैं। अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है, यानि सोमवार का प्रदोष, मंगल और अन्य वारों को आने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग बताई गयी है। रविवार के प्रदोष को रवि-प्रदोष, सोमवार के प्रदोष को सोम-प्रदोष, मंगलवार के प्रदोष को भौम-प्रदोष, बुधवार के प्रदोष को सौम्यवारा प्रदोष, बृहस्पति वार के प्रदोष को गुरुवारा प्रदोष, शुक्रवार को भृगुवारा प्रदोष, शनि प्रदोष से पुत्र कामना की पूर्ति होती है। प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न कर जीवन में सुख-समृद्धि, लक्ष्मी प्राप्त करने का सुगम पाठ है। प्रदोषकाल में शिव पूजन अत्यन्त लाभदायक होता है। कहा जाता है कि रावण प्रदोष काल में शिव को प्रसन्न कर, सिद्धियां प्राप्त करता था। प्रातःकाल स्नानादि से पवित्र होकर शिव-स्मरण करते हुए निराहार रहें, सायंकाल, सूर्यास्त से एक घण्टा पूर्व, पुनः स्नान करके सुगंधि, मदार पुष्प, बिल्वपत्र, धूप-दीप तथा नैवेद्य आदि पूजन सामग्री एकत्र कर लें, पांच रंगों को मिलाकर पद्म पुष्प की प्रकृति बनाकर आसन पर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाय और देवाधिदेव शिव का पूजन करें। पंचाक्षर मंत्र का जाप करते हुए जल चढ़ाएं और ऋतुफल अर्पित करें। जिस कामनापूर्ति हेतु व्रत किया जा रहा है, उसकी प्रार्थना भगवान शिव के समक्ष श्रद्धा-भाव से करें, शिव के साथ पार्वतीजी और नंदी का पूजन भी अवश्य करें और शिवाष्टकम् का पाठ करें। इस स्त्रोत्र का पाठ करने से सुन्दर स्त्री, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत दोनों पक्षों की त्रयोदशी को करना चाहिए, प्रदोष व्रत अति सरल और सभी प्रकार का फल देने वाला है। स्कन्द आदि पुराणों में इस व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को सिंदूर, हल्दी, तुलसी, केतकी और नारियल का पानी बिल्कुल भी न चढ़ाएं। Shivashtakam-- प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम् । भवद्भव्य भूतेश्वरं भूतनाथं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 1 ॥ गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकाल कालं गणेशादि पालम् । जटाजूट गङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 2॥ मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महा मण्डलं भस्म भूषाधरं तम् । अनादिं ह्यपारं महा मोहमारं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 3 ॥ वटाधो निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम् । गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 4 ॥ गिरीन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदापन्न गेहम् । परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्-वन्द्यमानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 5 ॥ कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भोज नम्राय कामं ददानम् । बलीवर्धमानं सुराणां प्रधानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 6 ॥ शरच्चन्द्र गात्रं गणानन्दपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् । अपर्णा कलत्रं सदा सच्चरित्रं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 7 ॥ हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारं। श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे ॥ 8 ॥ स्वयं यः प्रभाते नरश्शूल पाणे पठेत् स्तोत्ररत्नं त्विहप्राप्यरत्नम् । सुपुत्रं सुधान्यं सुमित्रं कलत्रं विचित्रैस्समाराध्य मोक्षं प्रयाति ॥